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भक्ति और आत्मदान
भक्ति
भक्ति : विनयशील और सुरभित, यह बदले में कुछ चाहे बिना अपने- आपको देती है ।
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भक्तिपूर्ण वृत्ति : विनयशील और अपने-आपको भुलाने वाली, यह विलक्षण फल देती है ।
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ऐसी भक्ति जो हृदय की गहराइयों में एकाग्रचित्त और शान्त रहती है लेकिन सेवा ओर आज्ञापरता में अभिव्यक्त होती है; वह चिल्लाती और रोती हुई भक्ति से कहीं अधिक शक्तिशाली, अधिक सच्ची, अधिक दिव्य होती है ।
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सच्ची भक्ति गंगाजल से कहीं अधिक प्रभावकारी है ।
पूजा
पूजा : तुम्हारी भक्ति का रूप या उसकी बाहरी अभिव्यक्ति ।
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सच्ची पूजा : सम्पूर्ण और सतत, बिना किसी मांग या अपेक्षा के । *
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